मास्क पहनने से बेहतर हो सकती है इम्यूनिटी: रिसर्च

मास्क पहनने से बेहतर हो सकती है इम्यूनिटी: रिसर्च

सेहतराग टीम

लंबे वक्त से पूरी दुनिया में कोरोना वायरस मौजूद है। इसने लगभग देशों को प्रभावित किया है। हालांकि किसी देश में इसका प्रभाव कम है और किसी देश में प्रभाव ज्यादा है। जैसे-जैसे कोरोना वायरस का प्रसार वैसे-वैसे सभी देश वायरस से बचाव करने ज्यादा से ज्यादा सावधानी बरत रहे हैं। यही नहीं लोगों को भी सलाह दी जा रही है कि वो जितना हो सके सावधानी बरतें। अब तक कोरोना की वैक्सीन भी नहीं आई है। ऐसे में दुनियाभर के वैज्ञानिक भी सलाह दे रहे हैं कि जब तक कोई इलाज नहीं है तब तक सावधानी को ही इलाज मानकर चलें। अभी के लिए यही एक बेहतर उपाय है जिससे महामारी से बचाव किया सकता है।

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इसके साथ ही वैज्ञानिक महामारी से बचने के लिए दुसरे विकल्पों पर भी विचार कर रहे हैं।  कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना काल में मास्‍क पहनने से इम्‍युनिटी डेवलप हो सकती है और कोविड संक्रमण धीमा हो सकता है।

उन्‍होंने कहा कि मास्‍क वायरस के संक्रमणकारी हिस्‍से को फिल्‍टर कर सकते हैं लेकिन पूरी तरह नहीं रोक सकते। ऐसे में कोरोना इन्‍फेक्‍शन होगा तो जरूर लेकिन वह घातक नहीं होगा। एक तरह से यह भयंकर बुखार के बजाय हल्‍का बुखार सहने जैसा है।

यू इंग्‍लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की मोनिका गांधी और जॉर्ज रदरफोर्ड ने यह विचार सामने रखा है। चेचक की वैक्‍सीन बनने तक लोग वैरियोलेशन लेते थे। इसमें जिनको बीमारी नहीं होती थी, उन्‍हें चेचक मरीजों की पपड़ी के मैटीरियल के संपर्क में लाया जाता था। इससे हल्‍का इन्‍फेक्‍शन होता था लेकिन पूरी तरह बीमारी होने से बचा लेता था। साइंटिस्‍ट्स कोविड में भी ऐसी ही संभावना देख रहे हैं। इसके पीछे वायरल पैथोजेनेसिस की पुरानी थिअरी है जो कहती है कि बीमारी की गंभीरता इसपर निर्भर करती है कि वायरस इनोक्‍युलम (वायरस का संक्रमणकारी हिस्‍सा) शरीर में कितना गया है।

गांधी और रदरफोर्ड दोनों लोगों का कहना है कि अगर कोरोना इंफेक्शन भी वायरल इनोक्‍युलम पर निर्भर करती है तो फेस मास्‍क पहनकर बचाव हो सकता है। इससे वायरस का कुछ असर कम हो जाएगा। स्‍टडी में दोनों ने कहा, मास्‍क वायरस की मौजूदगी वाली कुछ ड्रॉपलेट्स को फिल्‍टर कर सकता है, ऐसे में मास्‍क पहनने से किसी व्‍यक्ति के शरीर में इनोक्‍युलम कम हो सकता है। चूहों पर भी प्रयोग करने पर ऐसा ही कुछ समाने आया। नतीजों से इस थिअरी को समर्थन भी मिला है। पता चला कि जिन चूहों ने मास्‍क पहनना था, उन्‍हें इंफेक्शन होने की संभावना या तो कम रही या फिर बेहद हल्‍का इंफेक्शन हुआ।

दोनों साइंटिस्‍ट्स ने कहा कि उनकी थिअरी है कि नए वायरल इन्‍फेक्‍शन की दर कम करने से, वैसे लोगों का अनुपात बढ़ेगा जो एसिम्‍प्‍टोमेटिक रहते हैं। उन्‍होंने अर्जेंटीना के एक क्रूज शिप का हवाला दिया जिसके पैसेंजर्स को सर्जिकल और N95 मास्‍क दिए गए थे। इससे पहले जहाजों पर सामान्‍य मास्‍क पहनने पर 20% मरीज एसिम्‍प्‍टोमेटिक केस मिलते थे, जबकि इस जहाज पर खास मास्‍क दिए जाने पर 81% लोग एसिम्‍प्‍टोमेटिक पाए गए।

इंस्टिट्यूट ऑफ लिवर एंड बाइलरी साइंसेज के डॉ एसके सरीज ने कहा कि इस रिसर्च पेपर ने यह समझाया है कि कैसे दिल्‍ली की 29% आबादी ऐंटीबॉडी पॉजिटिव थी मगर कभी इंफेक्शन  नहीं हुआ। उन्‍होंने कहा, मास्‍क पहनने से वायरस की बहुत कम मात्रा शरीर में प्रवेश कर सकती है और वैक्‍सीन जैसा असर कर सकती है यानी असल में इंफेक्शन हुए बिना भी ऐंटीबॉडी बन सकती हैं।

 

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